रहते हो खफा हम से, वजह क्या है,
देते हो यूँ सज़ा, गुनाह क्या है.
यकीन हुआ तुम्हें गैरों की बात का,
चलो यह तो बताओ तुमने, सुना क्या है.
ख़बर मेरे दर्द की सारे शहर को है,
एक तुम पूछते हो, के हुआ क्या है.
आंसू पीकर रहती है खुमारी हर वक़्त,
हमे ना पता, दूसरा नशा क्या है.
तेरे दीदार से ही आये तवानाई मुझमें,
हर मरीज़ मुझसे पूछे, ये दवा क्या है
इबादत के सिलसिले, ख़तम कहाँ होंगे
पर एक आरज़ू को तरसे, तो यह ख़ुदा क्या है.