कुछ अपनों से डरता हूँ।
कुछ अनजानों से डरता हूँ।
कुछ तुमसे कुछ उससे।
हाँ इंसानों से डरता हूँ।
मुझे कहती ये मेरी हद नहीं।
मैं आसमानों से डरता हूँ।
मुझे सपने पसन्द नहीं है।
मैं अरमानो से डरता हूँ।
जिनमें मेरी माँ ना हो
उन आशियानों से डरता हूँ।
जो छोड़ देते हैं कमजोरों को।
मैं उन परवानों से डरता हूँ।
जहाँ लोग बस्ते है परिवार नहीं
मैं उन मकानों से डरता हूँ ।
जहां रहती नहीं याद यारो की
मैं उन ठिकानों से डरता हूँ।
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Bhai mast likha maza aa gaya
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Wah bohot khoob
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Thnks bhai
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Shukriya
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