दिल बदल सकते
तो बदल लिया होता
गर्त में गिरने से पहले, संभल लिया होता
लेकिन ना दिल बदला , ना हम बदले
बस साल यह बदलता चला गया
ऋतुओं की भांति , हाल दिल का तुम्हारे
बदलता चला गया
मै आस लिए बैठा था, उस प्रेम भरी पुरवाई की
नासमझ ना देख सका, की
मेरे हिस्से का बादल कहीं ओर बरसता चला गया
और शिकायत करता भी तो कैसे
मै लिए बैठा था सादगी की उदासीनता
और वोह किसी ओर के रंग में
रंगता चला गया,
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Beautiful.
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Glad you like it
Again a great one. Really like your poetry
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