बिछड़े गए परिंदे जैसे कब मिले ही ना थे
चल पड़े अपने रास्ते मैं , मुँह फ़ेर के जैसे दो अंजान थे ।
ना पूछे किसने सबाल ना किसने जवाब दी
कुछ समय का खेल था, कुछ बदलाब अपनो ने दी ।।
बिछड़े गए परिंदे जैसे कब मिले ही ना थे
चल पड़े अपने रास्ते मैं , मुँह फ़ेर के जैसे दो अंजान थे ।
ना पूछे किसने सबाल ना किसने जवाब दी
कुछ समय का खेल था, कुछ बदलाब अपनो ने दी ।।