बरसों से लगा दिखावे का मुखौटा,
अब काम का कहाँ,
मुश्किलों के भंवर में,
जब गोते लगा रहा जहाँ,
वक्त है हम जगाए आत्मविश्वास को,
अंधेरे में छुपे उस ज्ञान के प्रकाश को,
खंगाले उस करुणा का भंडार,
जिसका किया करते थे व्यापार,
कर दिल नम्र, इरादें चट्टान,
और बढ़े, कुचलने को यह भयंकर तूफान,
यही समय है, अपने कर्तव्य निभाने का,
मुखौटा नहीं, अपना असली रूप दिखाने का॥