रात की खामोशी सुनी है कभी?
बहुत बातुनी होती है।
तुम्हारे किस्से किसी कसेट में,
रिकॉर्ड कर रखे हैं उसने।
जब कसेट पुरी हो जाती है,
और मैं अपनी बोझल पलके इन,
खुरदरी ऑंखों पर गिराता हूॅं।
खामोशी, वो तुम्हरी मिठी आवाज,
फिरसे चलाकर,
धुंध में कहीं ओझल हो जाती है।
कहीं दुर बैठ कर मुझे निहारती है,
मुझ पर हॅंसती है,
मुझे चिढाती है।
मुझे कभी सोने नही देती,
वह मिठी आवाज या शायद वह खामोशी।
रात की खामोशी सुनी है कभी?
@alfaaz_by_shakir