छोटी छोटी राहों पर
चलते रहे मेरे बड़े बड़े कदम
एक तेरी चाह में
खुद पर करते रहे सितम
तु तो बस एक मरीचिका था
जो खुद का ना था, तो मेरा कैसे हो गया
एक अनजानी सी चाह में मैं ने ये कैसे कर दिया
ना ढूंढ पाया तुझको मैं
खुद को भी लापता कर लिया
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Shukriya
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You write so good
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Thank u
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Very well penned…